विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम् ।
पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम् ॥
जिसका सरल शब्दों में अर्थ है, विद्या से विनय (नम्रता) आती है, विनय से पात्रता (सजनता) आती है, पात्रता से धन की प्राप्ति होती है, धन से धर्म और धर्म से सुख की प्राप्ति होती है। अर्थात जीवन के हर सुख को पाने का रास्ता बिना ज्ञान के तय कर पाना असंभव है। मनुष्य जीवन का आदि और अंत, विद्या ही है।
अशिक्षित, अज्ञानी व्यक्ति पशु के समान है जो अपने जीवन में कभी कोई पात्रता हांसिल नहीं कर सकता। शिक्षा मनुष्य के जीवन का मार्ग प्रशस्त करती है। यह मनुष्य को समाज में प्रतिष्ठित करने का कार्य करती है। इससे मनुष्य के अंदर मनुष्यता आती है। शिक्षा से समाज, परिवार और देश में सुसंस्कृत भावनाओं का विकास होता है।
लेकिन ज्ञान पाने के लिए निजी सुख-सुविधाओं का त्याग करना बहुत ज़रूरी है। कठिन परिश्रम और त्याग करके ही ज्ञान हासिल किया जा सकता है। जिस इंसान को केवल सुख की अभिलाषा हो उसे विद्या की आशा छोड़ देनी चाहिए। क्योंकि आलसी व्यक्ति कभी भी विद्या रुपी धन को हासिल नहीं कर सकता, जो की संसार का सबसे बड़ा धन है। यह कभी ख़त्म नहीं होता बल्कि बांटने पर दुगना होता जाता है।
आप कितने भी धनी हो, सुन्दर हो, कितने ही बड़े परिवार से जुड़े हो, लेकिन ज्ञान रहित आपका जीवन खोखला है, व्यर्थ है। जो लोग भौतिक सुख सुविधाओं के मोह में फस कर शिक्षा का त्याग कर देते हैं, वह लोग अपने जीवन में कोई सफलता हासिल नहीं कर पाते, क्योंकि ज्ञान रुपी आँखों के बिना जीवन, नेत्रहीन व्यक्ति के जीवन से भी कही ज्यादा कठिन है।
शिक्षित होना एक तपस्या के समान है, जहां हर प्रकार के सुख का त्याग करना होता है। एक बार जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में यह त्याग किया उसके लिए कोई भी काम फिर मुश्किल नही रहता। शिक्षित व्यक्ति अपने जीवन में आने वाली हर चुनौती के लिए तत्पर रहता है, सजग रहता है।
विद्या, माता के समान होती है, जो जीवन के हर कार्य के सिद्ध होने का आशीर्वाद आपको देती है। आज के समय में शिक्षा को केवल धनार्जन के तराजू से तोला जाता है, जो की कतई उसका मानक नहीं है। ज्ञान ही सबसे बड़ी संपत्ति है, भौतिक सुख सुविधाओं से ज्ञान के महत्व की तुलना करना कतई सही नहीं है। ज्ञान आपको विनम्र बनाता है, समाज में सुसंस्कारित रूप से जीना सिखाता है। जीवन जीने की कलाओं को सीखना ही शिक्षा का मूल उद्देश्य है।
जीवन के इस युद्ध में लड़ने के लिए, शिक्षा रुपी शास्त्रों से सुसज्जित होना बहुत ज़रूरी है। अपने सपनों को पूरा करने के लिए सर्वप्रथम योग्य बने। आपने अपने भविष्य के लिए जो भी कार्य क्षेत्र चुना हो, आप उस क्षेत्र के सबसे जानकार और योग्य व्यक्ति होने चाहिए। और यह तभी संभव है जब आप उस क्षेत्र के किताबी ज्ञान के साथ-साथ, उसके क्रियान्वयन की जानकारी भी रखते हों, आप अनुभवी तभी कहलाएँगे जब आपके पास आपके कार्यक्षेत्र का किताबी और प्रायोगिक, दोनों प्रकार का ज्ञान बराबर मात्रा में है। कोई काम छोटा या बड़ा नहीं है, आपकी महत्ता बर्करार रहेगी, अगर आप उस कार्य क्षेत्र के सबसे अनुभवी व्यक्ति हैं।